मातृहस्तेन भोजनम् मातृ मुखेन शिक्षणम् से ही उत्तम स्वास्थ्य संभव है - डाॅ.विवेक दुबे

बिलासपुर/-
07 अप्रैल  विश्व स्वास्थ्य दिवस के शुभ अवसर पर निरामय आयुर्वेद धातुसाम्य चिकित्सा परामर्श केंद्र,बिलासपुर द्वारा एक स्वास्थ्य परिचर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ विवेक कुमार दुबे (एम.डी.-आयुर्वेद)ने अपने विचार रखते हुए बताया कि इस बार का स्वास्थ्य दिवस "OUR PLANET,OUR HEALTH "नामक थीम पर मनाया जा रहा है अर्थात "हमारा जगत, हमारा स्वास्थ्य "।भारतीय चिकित्सा विज्ञान में जगत की परिभाषा बताते हुए यह कहा  गया है कि पृथ्वी का वह भू-भाग जहाँ पर जीव जन्म लेकर पूर्ण चेतना के साथ गति कर सकता है,उसे जगत कहते हैं। इस जगत में हम किस तरीके से रहें,जगत के साथ जीव का व्यवहार कैसा हो,जिससे हमारा उत्तम स्वास्थ्य बना रहे,इस  चर्चा का मुख्य बिंदु रहा।

भारतीयों का मुख्य भोजन चावल-दाल-सब्जी-रोटी के पीछे क्या भारतीय विज्ञान छुपा हुआ है,बिना इसको जाने हम उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त नहीं कर सकते है।जीव और जगत के बीच ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है। एक जीव इस जगत पर ऊर्जा अर्थात प्राण के लिए निर्भर रहता है। जीव और जगत दोनों 24 तत्वों से मिलकर बने होते हैं जीव के अंदर चेतना की विशिष्ट उपस्थिति होने के कारण वह एक निश्चित दिशा में एक निश्चित समय तक अपनी आयु को बरकरार रख सकता है। मनुष्य इस वाह्य जगत से 24 तत्वों को तीन पोषण मार्गों से लेकर आता है।प्रथम आहार,दूसरी निद्रा और तीसरा आनंद। यह तीन आहार निद्रा और आनंद आयुर्वेद में पोषण के मार्ग कहे गये है। इनके सम्यक पालन से हमारा उत्तम स्वास्थ्य बना रहता है । संक्षेप में कहें तो यह तीन हमारे शरीर में वाह्य जगत से 24 तत्वों को लाने का काम करते हैं। आहार उसमें प्रमुख होने के कारण इन सबका नेतृत्व कर्ता बन जाता है। भारतीय मनीषियों ने हमारे आहार को बहुत गहराई से समझते हुए 12 वर्गों में वर्गीकृत किया है।डा.दुबे ने बताया की आहार के अंतर्गत शूकधान्य ,शमीधान्य, मांस वर्ग, शाकवर्ग, फल वर्ग, ये पांच अन्न कहे गये है,अर्थात ऊर्जा (प्राण) को धारण करने वाले द्रव्य। हरित वर्ग,मद्य वर्ग,गोरस वर्ग,इक्षुविकार वर्ग ये 05 वर्ग पान (ऊर्जा को वाहित करने वाले) कहे गये है।इन दोनों अन्न और पान वर्गो को जोड़ने वाली विधि कृतान्न और आहार योगी वर्ग  कहलाते है।यह जो 12 वर्ग है वह हमारे शरीर के साथ कैसे जोड़ते हैं, इसका जब तक सामान्य ज्ञान हमारे भारत के हर नागरिक को नहीं होगा, तब तक उसका स्वास्थ्य उत्तम नहीं हो सकता है। ये अन्न और पान मुख्य रूप से हमारे शरीर के पांच विभागों में काम करते हैं  कोष्ठ अर्थात मुख से लेकर मलद्वार तक का भाग, मार्गस्थ रस अर्थात पोषण को ले जाने वाली वाहिनींया,शाखा अर्थात हमारे शरीर की धातुयें, उपांग अर्थात हमारे शरीर की संधियां,अंग  अर्थात हमारे हाथ पैर जिनके माध्यम से हम कार्य को संपादित करते हैं। डा.दुबे ने हमारा आहार 12  उपवर्गों  के  माध्यम से हमारे शरीर के इन पांच विभागों में कैसे काम करते हैं इसके बारे में विस्तार से बताया। शूकधान्य हमारे कोष्ठ में काम करता है। शमीधान्य हमारे मार्गस्थरस में काम करता है। मांसवर्ग हमारे शाखा में काम करता है ।शाक वर्ग हमारे उपांग में काम करता है और फल वर्ग हमारे अंगों को ऊर्जा प्रदान करता है। इसी तरीके से हमारे हरित वर्ग कोष्ठ में ऊर्जा को वाहित करते हैं,मद्यवर्ग हमारे मार्गस्थ रस में ऊर्जा को वाहित करते हैं।जल वर्ग शाखा में ऊर्जा को वाहित करते हैं।हमारे जो हमारे गोरसवर्ग  है वे उपांग में ऊर्जा को वाहित करते हैं और हमारे इक्षुविकार हमारे अंगों ऊर्जा को वाहित करते हैं।जब हम इनको(अन्न और पान) आपस में जोड़ते हैं तो यह कृतान्नवर्ग कहलाता है। जैसे खिचड़ी बनाना जैसे खीर बनाना ।जब हम खिचड़ी बनाते हैं तो उसमें शूकधान्य से चावल शमीधान्य से दाल और छौंक लगाने के लिए हरित वर्ग से प्याज लहसुन इत्यादि आपस में जोड़ते हैं।तो इस तरीके से हमारा कृतान्न तैयार होता है। ऐसे ही जैसे हम जब हम खीर बनाते हैं तो उसमें हमारा चावल(शूकधान्य) उसमें  दुग्ध वर्ग और शर्करा आदि(इक्षु विकार) ये तीन वर्ग जुड़ते हैं और साथ में अगर हम कुछ फल डालते हैं,तो उसमें यह चौथा  फल वर्ग भी जुड़ जाता है।हम जब इस खीर को खाते है तो हमारे शरीर के कोष्ठ,उपांग  और अंग को एकसाथ पोषण प्राप्त होता है,इसके घटको की उपस्थिति से। विस्तृत जानकारी के बाद एक खुली परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें श्रोताओं ने तरह तरह के प्रश्न पूछे आधुनिक समय में भोजन बनाने की पद्धति कैसी होनी चाहिए ?कौन सा पात्र लेना चाहिए? कुकर में खाना क्यों नहीं बनाना चाहिए हमारा जल कैसा होना चाहिए ?वर्तमान में प्रचलित शुद्धिकरण की जो  व्यवस्था है वह कैसी है? ऐसे बहुत सारे प्रश्न सामने आए ,दही का अभ्यास कब करना चाहिए? किस आहार को कब खाना चाहिए? स्रोताओं के प्रश्नों और जबाव ने वार्ता को अत्यंत रोचक बना दिया। अंत में डा. विवेक ने सभी से भारतीय भोजन प्रणाली का आलम्बन करने का आग्रह करते हुए कुछ प्रमुख दिशा निर्देश दिये। मुख्य रूप से यह बताया गया कि हमारे भोजन में चार सामान्य नियमों का ध्यान हमें करना चाहिए, हमारा भोजन दिनचर्या अनुसार होना चाहिए, हमारा भोजन ऋतुचर्या अनुसार होना चाहिए, हमारा भोजन हमारे उम्र अनुसार होना चाहिए हमारा भोजन हमारे कर्मानुसार होना चाहिए। अगर हम इन सारी बातों का पालन करते हैं और सम्यक आहार , सम्यक निद्रा और आनंद लेते हैं। तो निश्चित तौर पर हमारा उत्तम स्वास्थ्य बनाये रखने में हमें कोई कठिनाई नही आयेगी।
इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ स्त्री और प्रसूति रोग विशेषज्ञ (आयुर्वेद) डा.सीमा पाण्डेय ने किया।इस परिचर्चा का लाभ शहर के गणमान्य नागरिको,महिलाओं, बच्चों और प्रबुद्धजनों ने मिलकर प्राप्त किया।

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